आइये भगवान भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है के महतवपूर्ण रहस्य जानते हैं।
1. सर्वप्रथम भगवान शिव ने ही धरती
पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने
के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।
2. भगवान शिव के अस्त्र-शस्त्र अर्थात
भगवान शिव का धनुष (पिनाक), चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का
उन्होंने ही निर्माण किया था।
3. भगवान शिव के गले में जो नाग
लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के ही बड़े भाई का नाम शेषनाग है।
4. भगवान शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म
में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।
5. भगवान शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं - गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा।
सभी के जन्म की कथा रोचक है।
6. भगवान शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन
ऋषियों ने ही भगवान शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते
भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। भगवान शिव ने ही गुरु और शिष्य
परंपरा की शुरुआत की थी। भगवान शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।
7. भगवान शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी भगवान शिव का गण माना जाता है।
8. भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये भगवान शिव पंचायत कहलाते हैं।
9. भगवान शिव के द्वारपाल नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और
महाकाल।
10. जिस तरह जय और विजय विष्णु के
पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि भगवान शिव के पार्षद हैं।
11. भगवान शिव की वेशभूषा ऐसी है कि
प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों
में भगवान शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। भगवान शिव के
शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में विभक्त
हो गई।
12. ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर
उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि
ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए
बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।
13. भगवान भगवान शिव को देवों के
साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते
हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। भगवान शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।
14. वनवासी से लेकर सभी साधारण व्यक्ति
जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्थर के ढेले, बटिया को भगवान शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा
रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी भगवान शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और
अर्द्ध चन्द्र को भी भगवान शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग भगवान शिवलिंग अर्थात भगवान शिव की ज्योति का पूजन करते
हैं।
15. भगवान शिव ने भस्मासुर से बचने
के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप
गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की
पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था
वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।
16. श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप
पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में भगवान शिव के पैरों के निशान हैं।
ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को
सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।
रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू
क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्वर का मंदिर में भगवान शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके
अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर भगवान शिव के पदचिह्न हैं।
तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित
रुद्रपद मंदिर में भगवान शिव के दाएं पैर का निशान है।
जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास भगवान शिव के पदचिह्न
हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा
कैलाश में रखा था।
रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर भगवान शिवजी के पैरों के
निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।
17. वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि भगवान शिव के अवतार हुए हैं। वेदों में रुद्रों
का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।
18. भगवान शिव का विरोधाभासिक
परिवार है क्योकि भगवान शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि भगवान शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर
और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन भगवान शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या
वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।
19. भगवान शिव का निवास, तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर है। जहां पर भगवान शिव विराजमान हैं उस पर्वत
के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। भगवान शिव के आसन के ऊपर
वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।
20. ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी भगवान
शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी।
भगवान राम ने रामेश्वरम में भगवान शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।
21. भगवान शिव की भक्ति हेतु भगवान
शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। भगवान शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर भगवान शिवलिंग
के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।
22. भगवान शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम:
शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं
यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।
स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।
23. सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में भगवान शिव व्रत रखे जाते हैं। भगवान
शिवरात्रि और महाभगवान शिवरात्रि भगवान शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।
24. भगवान शंकर की परंपरा को उनके
शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (भगवान शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में
सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि
शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु
गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
25. भगवान शिव ने कालकूट नामक विष
पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। भगवान शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को
वरदान दिया था। भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। भगवान शिव ने गणेश और
राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर भगवान शिव ने
ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।
26. दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और
नागवंशी भी भगवान शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव भगवान शिव ही हैं। शैव
धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।
27. भगवान शिव के वैसे
तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में
मिलता है लेकिन प्रचलित नाम - महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, भगवान शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।
28. भगवान शिव ने अपनी अर्धांगिनी
पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक
शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान भगवान शिव द्वारा
पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।
29. वेद और उपनिषद सहित विज्ञान
भैरव तंत्र, भगवान शिव पुराण और भगवान शिव
संहिता में भगवान शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक
ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।
30. वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल
में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती
है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार
विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि
बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद भगवान शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद
अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप भगवान
शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।
31.बारह ज्योतिर्लिंग हैं- सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों
मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्म लिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो भगवान शिवलिंग के बारह खंड हैं। भगवान शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को
ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।
दूसरी मान्यता अनुसार भगवान शिव
पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे
थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर
गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्योतिर्लिंग
में शामिल किया गया।
32. भगवान शिव के
जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ
को पकड़ने वाले भगवान शिवभक्त हैं, क्योंकि भगवान शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से
पूर्व भगवान शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
33. भगवान शिव का नाम शंकर के साथ
जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- भगवान शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई
लोग भगवान शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा
तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को भगवान शिवलिंग का ध्यान करते
हुए दिखाया गया है। अत: भगवान शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को
भी भगवान शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर
के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।
34. देवताओं की दैत्यों से
प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी
देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी भगवान शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर भगवान शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए
भगवान शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण
को भी।
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