Jul 6, 2025

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य: युगदृष्टा ऋषि, साधक, और समाज-संस्कृति के महान निर्माता


भारतीय इतिहास ऋषियों और संतों की गौरवगाथाओं से भरा पड़ा है। लेकिन जब हम आधुनिक युग की ओर दृष्टिपात करते हैं, तो एक ऐसा व्यक्तित्व दृष्टिगोचर होता है जिसने बीसवीं सदी में धर्म, विज्ञान, साधना और समाज सेवा को एक सूत्र में बाँध दिया — वे थे पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य।


उन्होंने न केवल आत्मसाधना के क्षेत्र में क्रांतिकारी योगदान दिया, बल्कि अपने लेखन, आन्दोलन और संस्थानों के माध्यम से करोड़ों लोगों को जागरूक किया।
वे ऋषियों की परंपरा में आधुनिक युग के प्रतिनिधि, एक सच्चे युगदृष्टा थे।
प्रारंभिक जीवन
जन्म और परिवार

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का जन्म 20 सितम्बर 1911 को उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में स्थित एक छोटे से गाँव आँवलखेड़ा में हुआ। उनके पिता पं. रूपकिशोर शर्मा एक विद्वान, धार्मिक प्रवृत्ति के और सादे जीवन वाले व्यक्ति थे। माता दानवंती देवी एक उच्च विचारों वाली, अत्यंत संयमी और धार्मिक महिला थीं।

बालक श्रीराम बचपन से ही विलक्षण थे। सामान्य बालकों की तरह खेलकूद, चंचलता की बजाय वे एकाग्रचित्त, ध्यानप्रिय और आत्मावलोकन में रत रहते थे।
शिक्षा और स्वतंत्रता आन्दोलन

पं. श्रीराम शर्मा की प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। वे औपचारिक शिक्षा में अधिक आगे नहीं बढ़े, लेकिन उनका आत्मअध्ययन और विद्वता अत्यंत गहन थी।
वे हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी, और आधुनिक विज्ञान, मनोविज्ञान, आयुर्वेद, इतिहास आदि विषयों के प्रखर अध्येता थे।
स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी

वे मात्र 15 वर्ष की आयु में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।
उन्होंने क्रांतिकारी साहित्य तैयार किया, वितरित किया और ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रचार-प्रसार में जुटे।

उन्हें इस कारण जेल भी जाना पड़ा, लेकिन यह उनकी प्रतिबद्धता को और मजबूत करता गया।


“राजनीतिक क्रांति के साथ ही नैतिक और आध्यात्मिक क्रांति आवश्यक है।” – यही उनका ध्येय वाक्य बना।
आध्यात्मिक जीवन का आरंभ
हिमालयवासी गुरु से दीक्षा

सन् 1926 में, मात्र 15 वर्ष की उम्र में ही उन्हें एक दिव्य अनुभूति हुई। उन्होंने अनुभव किया कि एक अदृश्य दिव्य सत्ता उन्हें आंतरिक रूप से निर्देशित कर रही है।
बाद में उन्होंने लिखा कि यह अनुभव हिमालय के सिद्ध गुरु का था, जिन्होंने उन्हें गायत्री मंत्र की दीक्षा दी और जीवन का लक्ष्य बताया:


“तुम्हें आत्म निर्माण, समाज निर्माण और युग निर्माण का त्रैविध कार्य करना है।”

यह घटना उनके जीवन की दिशा ही बदल देती है।
कठोर तप और साधना
चौबीस महापुरश्चरण

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने 1937 से 1943 तक का समय अत्यंत कठोर साधना में व्यतीत किया।
उन्होंने 24 महापुरश्चरण किए – हर एक में 24 लाख गायत्री मंत्र जप किया गया।

इस अवधि में उन्होंने:


नित्य उपवास, ब्रह्मचर्य और संयम का पालन


गहन ध्यान, जप और स्वाध्याय


आत्म-मंथन और आत्मनिर्माण

इस कठोर साधना के माध्यम से उन्होंने अपने भीतर दिव्य क्षमताओं का विकास किया।
हिमालय तप (1941–43)

उन्होंने दो बार हिमालय की कठिन यात्राएँ कीं। वहां उन्होंने अपने दिव्य गुरु से भौतिक रूप में साक्षात्कार किया और मार्गदर्शन प्राप्त किया।

गुरु ने उन्हें आदेश दिया:


साहित्य सृजन करो – जिससे जन-जन तक ज्ञान पहुँचे।


एक आन्दोलन खड़ा करो – जो नई पीढ़ी को दिशा दे।


गायत्री को घर-घर पहुँचाओ – वैज्ञानिक आधार पर।
गायत्री साधना का प्रचार

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने गायत्री मंत्र को “सर्वजन हिताय” बनाया। उन्होंने कहा:


“गायत्री किसी विशेष धर्म, जाति, पंथ की नहीं, बल्कि एक सार्वजनीन चेतना का स्रोत है।”

उन्होंने गायत्री को तीन स्तरों पर प्रचारित किया:


मंत्र रूप में – जप व ध्यान हेतु


विचार रूप में – आत्मनिर्माण हेतु


जीवनशैली रूप में – चरित्र और व्यवहार में

उनका यह दृष्टिकोण लोगों को बेहद पसंद आया क्योंकि यह परंपरा, विज्ञान और आधुनिकता का समन्वय था।
आरंभिक समाज सेवा

उनकी समाज सेवा का कार्य मथुरा से शुरू हुआ। उन्होंने वहां गायत्री तपोभूमि की स्थापना की, जो साधकों का केंद्र बन गया।

उन्होंने:


सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध अभियान चलाया


जातिवाद, छुआछूत, बाल विवाह, दहेज प्रथा आदि के विरोध में लेख और भाषण दिए


युवाओं को स्वावलंबन, स्वाभिमान और आत्मनिर्माण का मार्ग दिखाया
उनकी दिनचर्या

पंडित श्रीराम शर्मा एक अत्यंत अनुशासित व्यक्ति थे।
उनकी दिनचर्या थी:


3 बजे ब्रह्ममुहूर्त में उठना


ध्यान, जप, लेखन


सुबह से दोपहर तक साहित्य लेखन


दोपहर में पत्र व्यवहार और मिलना-जुलना


संध्या को यज्ञ, भजन, प्रवचन


रात को आत्ममंथन

उन्होंने जीवन भर अपनी सादगी, संयम और सेवा से लोगों को आकर्षित किया।
उपसंहार (भाग 1 का)

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का प्रारंभिक जीवन, साधना और हिमालयवासी गुरु से संपर्क उनके जीवन की आधारशिला बनी।
उन्होंने स्वयं को इस युग के परिवर्तन हेतु समर्पित कर दिया।

अब आगे के भाग में हम देखेंगे:


उनका विशाल साहित्यिक योगदान


उनके विचारों की विशेषताएँ


युग निर्माण आन्दोलन की नींव


और अखिल विश्व गायत्री परिवार की स्थापना
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भाग 2: साहित्य, विचार-दर्शन और युग निर्माण आन्दोलन
साहित्यिक योगदान

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का सबसे अद्भुत योगदान उनका अभूतपूर्व साहित्य-सृजन है।
उनका लक्ष्य था – “ज्ञान-यज्ञ”, यानी ज्ञान का वितरण।

उन्होंने अपने जीवन में लगभग 3200 से अधिक पुस्तकें लिखीं।
उनका साहित्य सरल, सहज, वैज्ञानिक और अत्यंत प्रभावी भाषा में लिखा गया।

उनके लेखन की विशेषताएँ थीं:

✅ जटिल वेदांत और उपनिषद के विषयों को सरल भाषा में लाना
✅ धर्म को कर्मकांड-मुक्त और वैज्ञानिक रूप देना
✅ साधना, उपासना और आराधना को जनसुलभ बनाना
✅ समाज सुधार के लिए प्रेरक लेखन
प्रमुख रचनाएँ

उनकी कुछ अत्यंत प्रसिद्ध रचनाएँ हैं:

✅ "वाङ्मय" (108 खंड) – उनके संपूर्ण लेखन का संग्रह
✅ "सप्तकाण्डी साधना"
✅ "गायत्री महाविज्ञान"
✅ "युग निर्माण योजना दर्शन और दिशा"
✅ "अखण्ड ज्योति" पत्रिका के हजारों सम्पादकीय लेख
✅ "युगशक्ति गायत्री"
✅ "महाकाल का महातप"
✅ "ऋषि परम्परा का नवजागरण"

उनके लेखन में जीवन के हर पक्ष – व्यक्तिगत विकास, परिवार, समाज, राष्ट्र, मानवता, पर्यावरण, विज्ञान, अध्यात्म – को समेटा गया है।
अखण्ड ज्योति पत्रिका

1938 में उन्होंने “अखण्ड ज्योति” मासिक पत्रिका शुरू की।
इसका उद्देश्य था:

✅ धर्म और अध्यात्म का वैज्ञानिक स्वरूप देना
✅ अंधविश्वासों और कुरीतियों का विरोध
✅ आत्मनिर्माण का मार्गदर्शन

यह पत्रिका आज भी दुनिया के कई देशों में लाखों पाठकों तक पहुँचती है।
विचार-दर्शन

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का दर्शन अत्यंत मौलिक और समग्र था।
उन्होंने कहा:


“विचार क्रांति के बिना युग परिवर्तन सम्भव नहीं।”

उनकी प्रमुख विचारधाराएँ थीं:

✅ विचार क्रांति अभियान
✅ धर्म का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
✅ मानव जीवन का आध्यात्मीकरण
✅ आत्मनिर्माण से समाज निर्माण
1️⃣ विचार क्रांति अभियान

उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि समाज की समस्याओं का मूल कारण मानसिक प्रदूषण है।
समाधान है:

✅ नकारात्मक सोच से मुक्ति
✅ सद्विचारों का प्रसार
✅ शिक्षा और संवाद द्वारा जागृति

उनका “विचार क्रांति अभियान” जन-जन तक पहुँचा और लाखों लोगों ने इसे अपनाया।
2️⃣ धर्म का वैज्ञानिक स्वरूप

उन्होंने धर्म को कर्मकांड और पाखंड से मुक्त करके विज्ञान-सम्मत, तर्कसंगत और सार्वभौमिक रूप में प्रस्तुत किया।
उन्होंने कहा:


“धर्म का अर्थ है – जीवन को श्रेष्ठ बनाने की पद्धति।”

✅ धर्म को सेवा और सदाचार से जोड़ा
✅ यज्ञ और मंत्र विज्ञान के वैज्ञानिक पक्ष बताए
✅ आस्था को अंधविश्वास से अलग किया
3️⃣ जीवन साधना – उपासना, साधना, आराधना

उन्होंने जीवन को तीन अंगों में बाँटकर साधना की व्याख्या की:

✅ उपासना – ईश्वर से जुड़ने की कला
✅ साधना – आत्म-सुधार और आत्म-निर्माण
✅ आराधना – समाज की सेवा

उनका कथन था:


“सच्ची उपासना वह है जो साधना में उतरे और आराधना बन जाए।”
युग निर्माण आन्दोलन

श्रीराम शर्मा आचार्य का सबसे बड़ा सामाजिक योगदान था – “युग निर्माण आन्दोलन”।
उन्होंने कहा:


“अब समय आ गया है कि एक युग बदलें। और वह युग निर्माण विचार, आचरण और समाज व्यवस्था के परिवर्तन से ही होगा।”
युग निर्माण आन्दोलन की शुरुआत

1953 में उन्होंने “युग निर्माण योजना” की घोषणा की।
उनकी दृष्टि थी – “व्यक्तित्व निर्माण से परिवार निर्माण, परिवार निर्माण से समाज निर्माण, और समाज निर्माण से राष्ट्र निर्माण।”
युग निर्माण आन्दोलन के 18 सूत्र

उन्होंने इस आन्दोलन के 18 सूत्र बनाए, जिनमें शामिल हैं:

1️⃣ व्यक्तित्व निर्माण
2️⃣ परिवार निर्माण
3️⃣ सामाजिक कुरीति निवारण
4️⃣ नारी जागरण
5️⃣ शिक्षा सुधार
6️⃣ व्यसन मुक्ति
7️⃣ जाति-पाति उन्मूलन
8️⃣ धर्म का शुद्धीकरण
9️⃣ वैज्ञानिक दृष्टिकोण
10️⃣ आत्मनिर्भरता
11️⃣ नैतिक व्यापार और उद्योग
12️⃣ जनसंख्या नियंत्रण
13️⃣ पर्यावरण संरक्षण
14️⃣ स्वास्थ्य और स्वच्छता
15️⃣ ग्राम विकास
16️⃣ राष्ट्रीय एकता
17️⃣ विश्व-बंधुत्व
18️⃣ सेवा भावना का विकास

इन 18 सूत्रों के जरिए उन्होंने सम्पूर्ण जीवन-व्यवस्था का पुनर्निर्माण करने की रूपरेखा दी।
अभियान की कार्यशैली

युग निर्माण आन्दोलन कोई राजनैतिक आन्दोलन नहीं था।
यह था:

✅ अहिंसक
✅ स्वैच्छिक
✅ वैचारिक और नैतिक

उन्होंने गाँव-गाँव, घर-घर तक पहुँचने के लिए प्रज्ञा संस्थान, युग निर्माण स्कूल, गृहपत्र लेखन अभियान, संस्कार शालाएँ, शाखाएँ, युवा मंडल, महिला मंडल आदि बनवाए।
अखिल विश्व गायत्री परिवार की स्थापना

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने अपने जीवन के कार्य को संस्थागत रूप देने के लिए “अखिल विश्व गायत्री परिवार” (AVGP) की स्थापना की।

✅ 1971 में मथुरा में गायत्री तपोभूमि से इसकी शुरुआत हुई।
✅ 1971–75 में यह आन्दोलन देशभर में फैला।
✅ 1975 में हरिद्वार में शांतिकुंज की स्थापना हुई, जो इसका अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय बना।
अखिल विश्व गायत्री परिवार के उद्देश्य

✅ गायत्री उपासना और यज्ञ के माध्यम से आत्मिक विकास
✅ समाज में सदाचार, सेवा और नैतिकता का प्रचार
✅ विचार क्रांति के जरिए समाज परिवर्तन
✅ वैज्ञानिक अध्यात्म का प्रसार
वैश्विक विस्तार

आज गायत्री परिवार के लाखों सक्रिय स्वयंसेवक हैं।
यह आन्दोलन:

✅ 100 से अधिक देशों में फैला
✅ करोड़ों लोगों तक पहुँचा
✅ हजारों शाखाएँ और प्रज्ञा संस्थान बने
✅ लाखों लोगों ने व्यसनमुक्त जीवन और साधना अपनाई
पंडितजी का नेतृत्व-शैली

उनकी नेतृत्व शैली अद्भुत थी:

✅ वे स्वयं कठोर अनुशासन का पालन करते
✅ कभी किसी से दान नहीं माँगा – स्वावलंबी संगठन बनाया
✅ कार्यकर्ताओं को “सज्जन शक्ति” कहा और उन्हें प्रशिक्षित किया
✅ हर व्यक्ति को गुरु नहीं, “मित्र और मार्गदर्शक” बनकर प्रेरित किया
उनका संदेश

✅ “हम बदलेंगे – युग बदलेगा।”
✅ “विचारों की क्रांति से युग परिवर्तन।”
✅ “धर्म को जीवन में उतारो।”
✅ “सेवा ही सच्ची उपासना है।”
✅ “व्यक्तित्व निर्माण ही समाज निर्माण है।”
उपसंहार (भाग 2 का)

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने न केवल व्यक्तिगत साधना का पथ दिखाया, बल्कि उन्होंने सामाजिक और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की ठोस योजना भी दी।
उनका साहित्य, विचार क्रांति अभियान, युग निर्माण आन्दोलन और अखिल विश्व गायत्री परिवार – सभी ने मिलकर करोड़ों जीवन बदले हैं।

👉 अगले भाग (भाग 3) में हम देखेंगे:


शांतिकुंज और ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान


संस्कार अभियान और सेवा कार्य


भगवती देवी शर्मा का योगदान


महाप्रयाण और सूक्ष्म मार्गदर्शन


वर्तमान में प्रभाव और निष्कर्ष

✅ अब कृपया लिखें:
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बहुत अच्छा! अब लीजिए – वही लेख का भाग 3 (अंतिम भाग, लगभग 1800–2000 शब्द विस्तार में):
🌟 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य: युगदृष्टा ऋषि, साधक, और समाज-संस्कृति के महान निर्माता
भाग 3: संस्थाएँ, सेवा अभियान, महाप्रयाण और वर्तमान प्रभाव
शांतिकुंज की स्थापना

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने अखिल विश्व गायत्री परिवार के केन्द्रीय केन्द्र के रूप में “शांतिकुंज” की स्थापना 1971 में हरिद्वार में की।

शांतिकुंज न केवल एक आश्रम है, बल्कि वैचारिक क्रांति का प्रशिक्षण केंद्र है।
उद्देश्य

✅ साधना और उपासना का प्रशिक्षण
✅ जीवन निर्माण और चरित्र निर्माण
✅ युग निर्माण आन्दोलन के कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना
✅ समाज के हर वर्ग को आत्मिक दृष्टि देना
शांतिकुंज की विशेषताएँ

✅ यह पूर्ण रूप से दान-मुक्त, स्वावलंबी व्यवस्था पर चलता है।
✅ यहाँ हज़ारों साधक मुफ्त प्रशिक्षण लेते हैं।
✅ यहाँ यज्ञशाला, पुस्तकालय, गौशाला, उद्यान और शोध संस्थान भी हैं।
✅ “आचार्य कुलम” – बच्चों के लिए वैदिक पद्धति की आधुनिक शिक्षा का प्रयोगात्मक विद्यालय।
ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान

शांतिकुंज के निकट ही पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने एक और अद्भुत संस्था बनाई – ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान।

✅ उद्देश्य:
👉 अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय
👉 यज्ञ, मंत्र, ध्यान, साधना के वैज्ञानिक पहलू खोजना
👉 चिकित्सा में यज्ञ का उपयोग

✅ यहाँ आधुनिक प्रयोगशालाएँ स्थापित की गईं।
✅ उन्होंने वैज्ञानिकों, चिकित्सकों और शोधकर्ताओं को साथ लेकर काम किया।
शोध विषय

✅ यज्ञ चिकित्सा
✅ मंत्र शक्ति के प्रभाव
✅ ध्यान और मनोविज्ञान
✅ आयुर्वेदिक अनुसंधान
✅ पर्यावरण संरक्षण

उन्होंने कहा:


“धर्म और विज्ञान में कोई विरोध नहीं। दोनों मिलकर मानवता का उत्थान कर सकते हैं।”
संस्कार अभियान

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने “संस्कार अभियान” चलाया।
उन्होंने कहा:

✅ “मनुष्य की समस्याएँ संस्कारों की समस्याएँ हैं।”
✅ “सही संस्कार से ही व्यक्तित्व निर्माण होगा।”
प्रमुख संस्कार

उन्होंने 16 वैदिक संस्कारों को आधुनिक जीवन से जोड़ा।
✅ गर्भाधान संस्कार
✅ नामकरण
✅ अन्नप्राशन
✅ उपनयन
✅ विवाह
✅ गृहप्रवेश
✅ जन्मदिन
✅ श्राद्ध

👉 सबके लिए सरल, सुलभ, वैज्ञानिक विधियाँ तैयार कीं।
👉 पाखंड-मुक्त, जातिवाद-मुक्त विधियाँ प्रचारित कीं।
👉 लाखों परिवारों में ये संस्कार अपनाए गए।
समाज सेवा के अभियान

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने समाज सेवा को ही धर्म का सार माना।

✅ व्यसन मुक्ति अभियान
✅ अंधविश्वास उन्मूलन
✅ नारी जागरण
✅ पर्यावरण संरक्षण
✅ ग्राम विकास
महिला जागरण

उनकी धर्मपत्नी भगवती देवी शर्मा ने महिला जागरण को दिशा दी।
👉 महिलाओं को उपासना, साधना और संगठन के कार्य में जोड़ा।
👉 “महिला मंडल” बनाए गए।
👉 कन्या शिक्षण, आत्मनिर्भरता और नेतृत्व सिखाया गया।
भगवती देवी शर्मा का योगदान

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के समग्र कार्य में माता भगवती देवी शर्मा की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी।

✅ वे उनके कार्यों की पूर्ण सहभागी रहीं।
✅ शांतिकुंज के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई।
✅ महिला चेतना और संगठन को दिशा दी।
✅ पंडितजी के महाप्रयाण के बाद उन्होंने 1994 तक संगठन का संचालन किया।

उनका नाम श्रद्धा से लिया जाता है – “अवतार की अर्धांगिनी”।
महाप्रयाण और सूक्ष्म मार्गदर्शन

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने जीवन भर कहा:


“मेरा जीवन एक यज्ञ है – अंतिम आहुति तक।”

उनका शरीर त्याग 2 जून 1990 को हुआ।
लेकिन उन्होंने अपने शिष्यों से कहा:

✅ “मैं स्थूल शरीर छोड़कर सूक्ष्म शरीर में कार्य करूंगा।”
✅ “शांतिकुंज और ब्रह्मवर्चस में मेरी उपस्थिति बनी रहेगी।”
अंतिम निर्देश

👉 अपने अनुयायियों को “सज्जन शक्ति” और “देवत्व” जागृत करने का कार्य सौंपा।
👉 आत्मनिर्भर, शुद्ध और सेवा-प्रधान संगठन बनाया।
👉 “हम बदलेंगे – युग बदलेगा” का नारा दिया।
👉 युग निर्माण आन्दोलन को जीवन भर का मिशन बना दिया।
वर्तमान में प्रभाव

✅ आज अखिल विश्व गायत्री परिवार 100+ देशों में फैला है।
✅ करोड़ों साधक, अनुयायी और शुभचिंतक जुड़े हुए हैं।
✅ लाखों यज्ञ, संस्कार और साधना शिविर हर वर्ष होते हैं।
✅ शांतिकुंज एक वैश्विक आध्यात्मिक प्रशिक्षण केंद्र बन चुका है।
✅ ब्रह्मवर्चस संस्थान में शोध और चिकित्सकीय प्रयोग जारी हैं।
✅ “अखण्ड ज्योति”, “युग शक्ति” जैसी पत्रिकाएँ लाखों पाठकों तक जाती हैं।
✅ व्यसन मुक्ति, नारी जागरण, पर्यावरण संरक्षण, ग्राम विकास के हजारों प्रकल्प चल रहे हैं।
युग निर्माण आन्दोलन की आज की प्रासंगिकता

✅ आज दुनिया में नैतिक संकट गहराता जा रहा है।
✅ सामाजिक हिंसा, कट्टरता, स्वार्थ, पर्यावरण संकट जैसी समस्याएँ विकराल हैं।
✅ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का विचार क्रांति अभियान इन्हीं समस्याओं का हल सुझाता है।
✅ आत्मनिर्माण और समाज निर्माण के विचार आज भी उतने ही ज़रूरी हैं।
निष्कर्ष

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का जीवन और कार्य एक अद्भुत मिशन की कहानी है:

✅ उन्होंने जीवन को एक यज्ञ माना।
✅ उन्होंने साधना को व्यक्तिगत और सामाजिक उत्थान का माध्यम बनाया।
✅ उन्होंने धर्म को विज्ञान से जोड़ा।
✅ उन्होंने करोड़ों लोगों में विश्वास, नैतिकता और सेवा का भाव जगाया।
✅ उन्होंने एक संगठित, सशक्त, आत्मनिर्भर और वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला आध्यात्मिक आन्दोलन खड़ा किया।

उनका दिया संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक और प्रेरणादायक है:


“हम बदलेंगे – युग बदलेगा।”
“धर्म को जीवन में उतारो।”
“सेवा ही सच्ची उपासना है।”
“विचार क्रांति ही युग परिवर्तन का आधार है।”
श्रद्धांजलि

उनकी जीवन साधना, विचार और आन्दोलन के कारण उन्हें “युगऋषि”, “गायत्री ऋषि”, और “आधुनिक विश्वामित्र” कहा जाता है।
उनकी वाणी, लेखनी और संगठन ने एक ऐसा दीप जलाया है, जो अनगिनत आत्माओं का पथ प्रदर्शक बना हुआ है।
🌺 “वन्दे युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य – जिन्होंने अपने जीवन को युग परिवर्तन के यज्ञ में समर्पित कर दिया।” 🌺

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