जब श्री गणेश के प्रति उत्पन्न हुआ आकर्षण गणेश पूजा में तुलसी के पत्तों का उपयोग वर्जित है। इसके पीछे एक कथा है जो इस प्रथा की उत्पत्ति को स्पष्ट करती है। एक बार तुलसी देवी, भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए, गंगा के किनारे भ्रमण कर रही थीं। उसी समय उन्होंने युवा गणेश जी को तपस्या में लीन पाया। उस क्षण श्री गणेश ने अपने समस्त अंगों पर चंदन लगाया हुआ था, गले में पारिजात के फूलों के साथ स्वर्ण-मणि रत्नों के कई हार पहने हुए थे, और कमर पर कोमल रेशमी पीताम्बर धारण किए हुए थे। वह रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान थे। तुलसी ने उनमें पीताम्बर धारी श्री हरि का स्वरूप देखा। उनके अद्भुत और अलौकिक रूप को देखकर तुलसी को श्री कृष्ण का ध्यान आया और इस रूप को देखकर वह मोहित हो गईं। इसके बाद उन्होंने श्री गणेश को अपना पति चुनने का निर्णय लिया।
मोहित तुलसी ने विवाह करने की इच्छा व्यक्त की। जब तुलसी ने विवाह प्रस्ताव की बात श्री गणेश के समक्ष रखी, तो उन्होंने इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और तपस्या में विघ्न न डालने की सलाह दी। तुलसी ने अपनी बात कहने के लिए गणेश जी का ध्यान भंग कर दिया। तपस्या का उल्लंघन होने पर श्री गणेश ने असंतोष व्यक्त किया और तुलसी के इस कार्य को अशुभ माना। उन्होंने स्वयं को ब्रह्मचारी बताते हुए विवाह के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया। कुछ मान्यताओं के अनुसार, गणेश ने तुलसी से विवाह के लिए मना करते हुए कहा कि वे केवल अपनी माता पार्वती के समान स्त्री से विवाह करेंगे।
अपमानित तुलसी ने श्राप दिया गणेश द्वारा अस्वीकार किए जाने से तुलसी अत्यंत दुखी और क्रोधित हो गईं। उन्होंने इसे अपने अपमान के रूप में लिया और गणेश जी को श्राप दे दिया। तुलसी ने कहा कि गणेश का विवाह उनकी इच्छा के खिलाफ होगा और उन्हें कभी मां पार्वती जैसी जीवनसंगिनी नहीं मिलेगी। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि गणेश स्वयं को ब्रह्मचारी मानते हैं, लेकिन उनके दो विवाह होंगे। इस पर श्री गणेश भी क्रोधित हो गए।
गणेश जी ने तुलसी को श्राप दिया गणेश जी के क्रोध में आकर उन्होंने तुलसी को श्राप दिया कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा और तुम एक वृक्ष की तरह जड़ हो जाओगी। इस श्राप को सुनकर तुलसी भयभीत हो गईं और उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। तब उन्होंने श्री गणेश से क्षमा मांगी। गणेश जी का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने तुलसी से कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण नामक राक्षस से होगा। इस प्रकार, श्राप के पूर्ण होने के बाद तुम भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की प्रिय मानी जाओगी और कलयुग में जीवन और मोक्ष देने वाली बनोगी। तभी से भगवान श्रीहरि की पूजा में तुलसी का उपयोग अनिवार्य हो गया है। वहीं, गणेश पूजा में तुलसी का चढ़ाना निषिद्ध है और इसे शुभ नहीं माना जाता
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