Jun 22, 2025

EP 01 - Adhyatm Upanishad Explained | आत्मा की खोज और ओशो का दृष्टिकोण | Osho Spiritual Wisdom in Hindi



 आज हम बात कर रहे हैं "आध्यात्म उपनिषद" की — एक ऐसा ग्रंथ जो आत्मा की खोज, ध्यान, मुक्ति और मौन का विज्ञान सिखाता है।

आज के पहले एपिसोड में हम ओशो द्वारा दिए गए पहले प्रवचन को सरल, व्यावहारिक और अनुभवात्मक रूप में समझेंगे।

सबसे पहले प्रश्न उठता है — आत्मा क्या है? क्या आत्मा कोई वस्तु है? कोई लक्ष्य है?

ओशो कहते हैं — नहीं। आत्मा कोई वस्तु नहीं, जिसे पाया जाए। आत्मा तो वही है, जो तुम हो। तुम्हारे भीतर जो जीवन की ज्वाला जल रही है — वह आत्मा है। हमने आत्मा को शब्दों में बाँधने की कोशिश की है। कभी उसे आत्मा कहा, कभी आत्मा को आत्मा कहकर पूजा — लेकिन उसे कभी प्रत्यक्ष अनुभव नहीं किया। उपनिषदों का संदेश यह है कि आत्मा को पढ़ा नहीं जा सकता — आत्मा को जिया जाता है।

हम किताबें पढ़ सकते हैं, व्याख्यान सुन सकते हैं, लेकिन जब तक ध्यान में डूबकर आत्मा से सीधा साक्षात्कार नहीं होता, तब तक सारी जानकारी अधूरी है। हमारा सारा जीवन मन, बुद्धि और अहंकार के इर्द-गिर्द घूमता है। ओशो कहते हैं — यही सबसे बड़ी बाधा है। मन जानना चाहता है, आत्मा को नहीं। बुद्धि तर्क करना चाहती है, लेकिन आत्मा अनुभव है। अहंकार चाहता है कि ‘मैं जान गया’, जबकि आत्मा तो तभी प्रकट होती है जब 'मैं' गिर जाए। मन का स्वभाव है शंका करना।

आत्मा में प्रवेश तभी संभव है जब मन शांत हो — जब कोई प्रश्न न बचे। यह मौन की अवस्था है — और यही ध्यान है। ध्यान कोई क्रिया नहीं, बल्कि "अक्रियता की अवस्था" है — जहाँ कुछ करना नहीं होता, केवल होना होता है।

अब बात करते हैं उपनिषदों की मूल शिक्षा की।

उपनिषदों का अर्थ ही है — "निकट बैठना"।

किसके निकट? उस ज्ञानी के निकट, जो सत्य को जान चुका है। उपनिषदों में गुरु और शिष्य का संवाद होता है। गुरु केवल ज्ञान नहीं देता, बल्कि अनुभव कराता है।

वो कहता है —
"तत त्वम असि" — तू वही है। जो ब्रह्मांड है, वही तू है। तेरा शरीर सीमित हो सकता है, लेकिन तेरा स्वरूप असीम है। यह उपनिषदों की क्रांति है — कि तू स्वयं ही ब्रह्म है।

ओशो कहते हैं कि धर्म का मतलब कोई संस्था नहीं है। धर्म का अर्थ है — जागना। धर्म कोई पूजा नहीं, कोई मूर्ति नहीं — धर्म वह अनुभव है जो तब होता है जब तुम भीतर उतरते हो।

ओशो के अनुसार, चार अवस्थाएँ हैं आत्मा को जानने की:

1. श्रवण (सुनना) – उपनिषदों या गुरुओं से।

2. मनन (सोचना) – गहराई से चिंतन करना।

3. निदिध्यासन (ध्यान) – उस पर टिक जाना।

4. साक्षात्कार (अनुभव) – जब जानने वाला और जानने की प्रक्रिया दोनों विलीन हो जाएँ।

ओशो कहते हैं, "तुम्हारे भीतर सत्य पहले से मौजूद है। तुमने उसे ढंक रखा है — शब्दों, धारणाओं, धर्मों और अहंकारों से। तुम्हारा काम है केवल इन आवरणों को हटाना।"

तो दोस्तों,

आज के इस पहले भाग में हमने जाना कि आत्मा क्या है, उपनिषदों की क्या भूमिका है, और ओशो का दृष्टिकोण हमें कैसे आंतरिक खोज की ओर ले जाता है।

आत्मा कोई परीकथा नहीं है — वह तुम हो। तुम्हें कहीं जाना नहीं है — तुम्हें केवल स्वयं में लौटना है।

अगले एपिसोड में हम जानेंगे —

ध्यान क्या है? और ध्यान से आत्मा की पहचान कैसे संभव है?

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।

जी डी पाण्डेय

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