जब हम 'तप' और 'संन्यास' जैसे शब्द सुनते हैं, तो मन में एक विशेष छवि बनती है — कोई योगी हिमालय में बैठा ध्यान कर रहा है, या कोई साधु आग के चारों ओर तपस्या में लीन है। लेकिन क्या यही असली तप है? क्या संन्यास का अर्थ है घर-परिवार छोड़ देना?
ओशो, जिनकी वाणी गहराई और स्पष्टता से भरी है, इन परंपरागत धारणाओं को चुनौती देते हैं और हमें आत्मा की सच्ची पहचान की ओर ले जाते हैं।
🌺 असली तप क्या है?
अधिकतर लोग 'तप' को शरीर को कष्ट देने से जोड़ते हैं — उपवास, कठिन योगासन, ठंडी या गर्म जगहों में रहना आदि। लेकिन ओशो कहते हैं:
"तप का मतलब है: अपने भीतर की नकारात्मकता को जलाना।"
जैसे एक दीपक अपने भीतर के धुएं को जलाकर प्रकाश देता है, उसी प्रकार हमें भी अपने अंदर की अशुद्धियों को जलाकर प्रकाश फैलाना है।
🧘♂️ क्या संन्यास मतलब संसार छोड़ना है?
"संन्यास स्थान का नहीं, चेतना का मामला है।"
🔍 आत्मा क्या है?
अब सवाल उठता है — अगर हम शरीर नहीं हैं, मन नहीं हैं — तो फिर हम कौन हैं?
ओशो के अनुसार:
"आत्मा वही है जो देख रहा है। जो गवाह है।"
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जब तुम शरीर को देख सकते हो — तो तुम शरीर नहीं हो।
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जब तुम मन को देख सकते हो — तो तुम मन नहीं हो।
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जो देख रहा है — वही आत्मा है।
यह गवाह भाव ही आत्म-ज्ञान की कुंजी है।
📿 ओशो का संदेश इस प्रवचन में
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तप का मतलब है — अपने अंदर की नकारात्मकता को जलाना, न कि शरीर को कष्ट देना।
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संन्यास कोई बाहरी त्याग नहीं, बल्कि भीतर की मोहमुक्ति है।
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आत्मा को जानने के लिए — खुद को गवाह की दृष्टि से देखो।
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