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Jun 22, 2025

EP 04 - ओशो की जुबानी असली संन्यास और तपस्या क्या है? | Adhyatma Upanishad Explained

जब हम 'तप' और 'संन्यास' जैसे शब्द सुनते हैं, तो मन में एक विशेष छवि बनती है — कोई योगी हिमालय में बैठा ध्यान कर रहा है, या कोई साधु आग के चारों ओर तपस्या में लीन है। लेकिन क्या यही असली तप है? क्या संन्यास का अर्थ है घर-परिवार छोड़ देना?

ओशो, जिनकी वाणी गहराई और स्पष्टता से भरी है, इन परंपरागत धारणाओं को चुनौती देते हैं और हमें आत्मा की सच्ची पहचान की ओर ले जाते हैं।


🌺 असली तप क्या है?

अधिकतर लोग 'तप' को शरीर को कष्ट देने से जोड़ते हैं — उपवास, कठिन योगासन, ठंडी या गर्म जगहों में रहना आदि। लेकिन ओशो कहते हैं:

"तप का मतलब है: अपने भीतर की नकारात्मकता को जलाना।"

सच्चा तप वह है, जहाँ हम अपने भीतर के विकारों — अहंकार, लोभ, क्रोध, और मोह को जलाकर शुद्ध होते हैं।
यह तप शारीरिक नहीं, आध्यात्मिक और मानसिक होता है।

जैसे एक दीपक अपने भीतर के धुएं को जलाकर प्रकाश देता है, उसी प्रकार हमें भी अपने अंदर की अशुद्धियों को जलाकर प्रकाश फैलाना है।


🧘‍♂️ क्या संन्यास मतलब संसार छोड़ना है?

यह सबसे आम भ्रम है कि संन्यास का मतलब है — दुनिया छोड़कर जंगल या पर्वतों में चले जाना।
ओशो इस मिथक को पूरी तरह तोड़ते हैं:

"संन्यास स्थान का नहीं, चेतना का मामला है।"

कोई व्यक्ति घर-परिवार में रहकर भी संन्यासी हो सकता है, यदि उसका मन निर्लिप्त और शांत हो।
वहीं, कोई व्यक्ति सब कुछ छोड़कर हिमालय चला जाए लेकिन उसका मन मोह में डूबा हो — तो वह संन्यासी नहीं है।

संन्यास का अर्थ है — भीतर के मोह का टूट जाना।
जब व्यक्ति जीवन में होता है, लेकिन जीवन में लिप्त नहीं होता — वही असली संन्यास है।


🔍 आत्मा क्या है?

अब सवाल उठता है — अगर हम शरीर नहीं हैं, मन नहीं हैं — तो फिर हम कौन हैं?

ओशो के अनुसार:

"आत्मा वही है जो देख रहा है। जो गवाह है।"

  • जब तुम शरीर को देख सकते हो — तो तुम शरीर नहीं हो।

  • जब तुम मन को देख सकते हो — तो तुम मन नहीं हो।

  • जो देख रहा है — वही आत्मा है।

यह गवाह भाव ही आत्म-ज्ञान की कुंजी है।


📿 ओशो का संदेश इस प्रवचन में

  1. तप का मतलब है — अपने अंदर की नकारात्मकता को जलाना, न कि शरीर को कष्ट देना।

  2. संन्यास कोई बाहरी त्याग नहीं, बल्कि भीतर की मोहमुक्ति है।

  3. आत्मा को जानने के लिए — खुद को गवाह की दृष्टि से देखो।

ओशो की वाणी हमें याद दिलाती है कि असली अध्यात्म कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे अपने भीतर छिपा है।
जब हम भीतर के विकारों को जलाना सीख लेते हैं, जब हम संसार में रहकर भी उससे बंधे नहीं रहते, तभी सच्चा संन्यास, सच्चा तप, और आत्मा का साक्षात्कार होता है।

क्या आपने कभी खुद को "गवाह" के रूप में अनुभव किया है?
नीचे कमेंट करें और अपने विचार साझा करें।

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EP03 - Osho | मुक्ति, ब्रह्म और आत्मा का रहस्य | Osho on Self-Realization & Moksha

 


इस आध्यात्मिक यात्रा की तीसरी और अंतिम कड़ी में आपका स्वागत है।

पहले भाग में हमने आत्मा को समझा था,

दूसरे भाग में ध्यान और आत्मा के संबंध को जाना,

और अब — हम पहुँचते हैं अंतिम पड़ाव पर: मुक्ति और आत्मज्ञान की चरम स्थिति।

ध्यान क्या है? आत्मा से साक्षात्कार की रहस्यपूर्ण यात्रा | Osho on Meditation & Self-Realization

ध्यान क्या है? ध्यान से आत्मा की पहचान कैसे होती है – ओशो के विचारों के साथ

पिछले भाग में हमने जाना कि आत्मा क्या है और उपनिषदों के माध्यम से आत्म-खोज की यात्रा कैसे शुरू होती है।
आज के इस लेख में हम एक और गहराई में उतरते हैं —

🔎 ध्यान क्या है? और ध्यान से आत्मा की पहचान कैसे संभव है?

❌ ध्यान क्या नहीं है?

ध्यान को लेकर आजकल कई भ्रांतियाँ हैं। अधिकतर लोग इसे कोई तकनीक, अभ्यास या मानसिक युक्ति मान लेते हैं।

ओशो कहते हैं —

"ध्यान कोई टेक्नीक नहीं है। यह कोई क्रिया नहीं है, जिसे तुम अभ्यास की तरह दोहरा लो और आत्मज्ञान पा जाओ।"

  • ध्यान केवल मानसिक एकाग्रता नहीं है।

  • ध्यान जबरदस्ती चुप रहना नहीं है।

  • ध्यान भविष्य की कल्पना या संकल्पना भी नहीं है।

✅ ध्यान क्या है?

ध्यान एक मौन, सजग और साक्षी भाव की अवस्था है।
यह वह अवस्था है जहाँ विचार मौजूद हो सकते हैं, लेकिन आप उनसे जुड़ते नहीं।

ध्यान का अर्थ है — पूर्ण जागरूकता में स्थित होना।

🔥 ध्यान का स्वभाव — साक्षी भाव 

ओशो ध्यान को "साक्षी भाव" कहते हैं।
ध्यान का अर्थ है — जो कुछ भी हो रहा है, उसका सिर्फ निरीक्षण करना, न तो विरोध करना, न ही उसमें बह जाना।

यदि मन में क्रोध आए —

  • उसे दबाना नहीं,

  • उससे भागना नहीं,

  • बस देखना है

"क्रोध तुम्हारा नहीं है, वह एक मेहमान है।"

ओशो कहते हैं:

“मन तुम्हारा नहीं है, यह सामाजिक धागों से बुना हुआ है।
तुम्हारे विचार उधार लिए हुए हैं।
ध्यान से पहली बार तुम अपनी मौलिकता से मिलते हो।”

ध्यान वह दर्पण है, जिसमें तुम स्वयं को जैसे हो वैसे देख पाते हो — बिना किसी विकृति के।

🧘‍♂️ ध्यान और आत्मा का मिलन 

अब सवाल है — ध्यान के माध्यम से आत्मा को कैसे पहचाना जा सकता है?

जब ध्यान में विचारों की आवाज़ धीरे-धीरे शांत होती है —
तब एक गहन शांति उत्पन्न होती है।

यह शांति ही आत्मा का पहला संकेत है।

“ध्यान वह द्वार है जहाँ से आत्मा प्रकट होती है।
ध्यान में तुम बाहर से भीतर आते हो।
ध्यान में तुम असत्य से सत्य की ओर बढ़ते हो।” — ओशो

ध्यान एक यात्रा है:

  • बाहरी दुनिया से भीतर की ओर,

  • कोलाहल से मौन की ओर,

  • भीतर के रिक्तता की ओर।


ध्यान कोई प्रक्रिया नहीं, एक स्थिति है 

ध्यान को अक्सर योगासन या किसी विधि के साथ जोड़ा जाता है। लेकिन ओशो स्पष्ट करते हैं:

"ध्यान कोई तकनीक नहीं है, यह एक स्थिति है — और वह अनुभव से आती है।"

जैसे:

  • प्रेम सिखाया नहीं जा सकता, केवल अनुभव किया जा सकता है,

  • वैसे ही ध्यान भी सिखाया नहीं जा सकता, वह ‘घटता’ है।

ध्यान के लिए कोई विशेष समय या स्थान आवश्यक नहीं है।
अगर आप पूरे होश में कुछ भी कर रहे हैं — चलना, खाना, बोलना — तो वह भी ध्यान बन सकता है।

ध्यान का मूल सूत्र:

“जो कुछ भी करो, उसे पूर्ण सजगता के साथ करो।”

 

तो मित्रों,

ध्यान कोई अभ्यास नहीं है,
बल्कि वह अस्तित्व की अवस्था है — जो तुम्हारे भीतर पहले से मौजूद है, केवल उसे पहचानने की आवश्यकता है।

जब बाहरी शोर शांत होता है,
तभी भीतर की आवाज़, आत्मा की ध्वनि सुनाई देती है।

📌 हमने क्या सीखा?

  • ध्यान क्या नहीं है,

  • ध्यान का वास्तविक स्वरूप,

  • साक्षी भाव क्या है,

  • और ध्यान से आत्मा की पहचान कैसे होती है।

🔜 अगले भाग में जानिए —

“मुक्ति क्या है? और आत्मज्ञान की अंतिम अवस्था कैसी होती है?”


🙏 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।

G D PANDEY


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EP 01 - Adhyatm Upanishad Explained | आत्मा की खोज और ओशो का दृष्टिकोण | Osho Spiritual Wisdom in Hindi



 आज हम बात कर रहे हैं "आध्यात्म उपनिषद" की — एक ऐसा ग्रंथ जो आत्मा की खोज, ध्यान, मुक्ति और मौन का विज्ञान सिखाता है।

आज के पहले एपिसोड में हम ओशो द्वारा दिए गए पहले प्रवचन को सरल, व्यावहारिक और अनुभवात्मक रूप में समझेंगे।

सबसे पहले प्रश्न उठता है — आत्मा क्या है? क्या आत्मा कोई वस्तु है? कोई लक्ष्य है?

ओशो कहते हैं — नहीं। आत्मा कोई वस्तु नहीं, जिसे पाया जाए। आत्मा तो वही है, जो तुम हो। तुम्हारे भीतर जो जीवन की ज्वाला जल रही है — वह आत्मा है। हमने आत्मा को शब्दों में बाँधने की कोशिश की है। कभी उसे आत्मा कहा, कभी आत्मा को आत्मा कहकर पूजा — लेकिन उसे कभी प्रत्यक्ष अनुभव नहीं किया। उपनिषदों का संदेश यह है कि आत्मा को पढ़ा नहीं जा सकता — आत्मा को जिया जाता है।