ध्यान क्या है? ध्यान से आत्मा की पहचान कैसे होती है – ओशो के विचारों के साथ
पिछले भाग में हमने जाना कि आत्मा क्या है और उपनिषदों के माध्यम से आत्म-खोज की यात्रा कैसे शुरू होती है।
आज के इस लेख में हम एक और गहराई में उतरते हैं —
🔎 ध्यान क्या है? और ध्यान से आत्मा की पहचान कैसे संभव है?
❌ ध्यान क्या नहीं है?
ध्यान को लेकर आजकल कई भ्रांतियाँ हैं। अधिकतर लोग इसे कोई तकनीक, अभ्यास या मानसिक युक्ति मान लेते हैं।
ओशो कहते हैं —
"ध्यान कोई टेक्नीक नहीं है। यह कोई क्रिया नहीं है, जिसे तुम अभ्यास की तरह दोहरा लो और आत्मज्ञान पा जाओ।"
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ध्यान केवल मानसिक एकाग्रता नहीं है।
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ध्यान जबरदस्ती चुप रहना नहीं है।
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ध्यान भविष्य की कल्पना या संकल्पना भी नहीं है।
✅ ध्यान क्या है?
ध्यान एक मौन, सजग और साक्षी भाव की अवस्था है।
यह वह अवस्था है जहाँ विचार मौजूद हो सकते हैं, लेकिन आप उनसे जुड़ते नहीं।
ध्यान का अर्थ है — पूर्ण जागरूकता में स्थित होना।
🔥 ध्यान का स्वभाव — साक्षी भाव
ओशो ध्यान को "साक्षी भाव" कहते हैं।
ध्यान का अर्थ है — जो कुछ भी हो रहा है, उसका सिर्फ निरीक्षण करना, न तो विरोध करना, न ही उसमें बह जाना।
यदि मन में क्रोध आए —
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उसे दबाना नहीं,
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उससे भागना नहीं,
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बस देखना है।
"क्रोध तुम्हारा नहीं है, वह एक मेहमान है।"
ओशो कहते हैं:
“मन तुम्हारा नहीं है, यह सामाजिक धागों से बुना हुआ है।
तुम्हारे विचार उधार लिए हुए हैं।
ध्यान से पहली बार तुम अपनी मौलिकता से मिलते हो।”
ध्यान वह दर्पण है, जिसमें तुम स्वयं को जैसे हो वैसे देख पाते हो — बिना किसी विकृति के।
🧘♂️ ध्यान और आत्मा का मिलन
अब सवाल है — ध्यान के माध्यम से आत्मा को कैसे पहचाना जा सकता है?
जब ध्यान में विचारों की आवाज़ धीरे-धीरे शांत होती है —
तब एक गहन शांति उत्पन्न होती है।
यह शांति ही आत्मा का पहला संकेत है।
“ध्यान वह द्वार है जहाँ से आत्मा प्रकट होती है।
ध्यान में तुम बाहर से भीतर आते हो।
ध्यान में तुम असत्य से सत्य की ओर बढ़ते हो।” — ओशो
ध्यान एक यात्रा है:
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बाहरी दुनिया से भीतर की ओर,
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कोलाहल से मौन की ओर,
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भीतर के रिक्तता की ओर।
ध्यान कोई प्रक्रिया नहीं, एक स्थिति है
ध्यान को अक्सर योगासन या किसी विधि के साथ जोड़ा जाता है। लेकिन ओशो स्पष्ट करते हैं:
"ध्यान कोई तकनीक नहीं है, यह एक स्थिति है — और वह अनुभव से आती है।"
जैसे:
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प्रेम सिखाया नहीं जा सकता, केवल अनुभव किया जा सकता है,
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वैसे ही ध्यान भी सिखाया नहीं जा सकता, वह ‘घटता’ है।
ध्यान के लिए कोई विशेष समय या स्थान आवश्यक नहीं है।
अगर आप पूरे होश में कुछ भी कर रहे हैं — चलना, खाना, बोलना — तो वह भी ध्यान बन सकता है।
ध्यान का मूल सूत्र:
“जो कुछ भी करो, उसे पूर्ण सजगता के साथ करो।”
तो मित्रों,
ध्यान कोई अभ्यास नहीं है,
बल्कि वह अस्तित्व की अवस्था है — जो तुम्हारे भीतर पहले से मौजूद है, केवल उसे पहचानने की आवश्यकता है।
जब बाहरी शोर शांत होता है,
तभी भीतर की आवाज़, आत्मा की ध्वनि सुनाई देती है।
📌 हमने क्या सीखा?
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ध्यान क्या नहीं है,
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ध्यान का वास्तविक स्वरूप,
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साक्षी भाव क्या है,
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और ध्यान से आत्मा की पहचान कैसे होती है।
🔜 अगले भाग में जानिए —
“मुक्ति क्या है? और आत्मज्ञान की अंतिम अवस्था कैसी होती है?”
🙏 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।
G D PANDEY
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